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सम॒न्या यन्त्युप॑ यन्त्य॒न्याः स॑मा॒नमू॒र्वं न॒द्यः॑ पृणन्ति। तमू॒ शुचिं॒ शुच॑यो दीदि॒वांस॑म॒पां नपा॑तं॒ परि॑ तस्थु॒रापः॑॥

English Transliteration

sam anyā yanty upa yanty anyāḥ samānam ūrvaṁ nadyaḥ pṛṇanti | tam ū śuciṁ śucayo dīdivāṁsam apāṁ napātam pari tasthur āpaḥ ||

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Pad Path

सम्। अ॒न्याः। यन्ति॑। उप॑। य॒न्ति॒। अ॒न्याः। स॒मा॒नम्। ऊ॒र्वम्। न॒द्यः॑। पृ॒ण॒न्ति॒। तम्। ऊँ॒ इति॑। शुचि॑म्। शुच॑यः। दी॒दि॒ऽवांस॑म्। अ॒पाम्। नपा॑तम्। परि॑। त॒स्थुः॒। आपः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मेघ विषय को अगल मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (अन्याः) और (नद्यः) नदी (समानम्) तुल्य (ऊर्वम्) दुःखों को नष्ट करनेवाले को (संयन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होतीं वा (अन्याः) और (उप,यन्ति) उसको उसके समीप से प्राप्त होती हैं (तम्, उ) उसी (अपां, नपातम्) जलों के बीच नाशरहित (दीदिवांसम्) अतीव प्रकाशमान (शुचिम्) पवित्र अग्नि को (शुचयः) पवित्र (आपः) जल (परि, तस्थुः) सब ओर से प्राप्त हो स्थिर होते हैं, वे जल सबको (पृणन्ति) तृप्त करते हैं ॥३॥
Connotation: - जैसे नदी आप समुद्र को प्राप्त होकर स्थिर और शुद्ध जलवाली होती हैं, जैसे जल मेघमण्डल को प्राप्त होकर दिव्य होते हैं, वैसे स्त्री अभीष्ट पति और पति अभीष्ट स्त्री को पाकर स्थिरचित्त होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेघविषयमाह।

Anvay:

अन्या नद्यस्समानमूर्वं संयन्ति अन्या उपयन्ति तम्वपां नपातं दीदिवांसं शुचिमग्निं शुचय आपः परि तस्थुस्ताः सर्वान्पृणन्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (सम्) (अन्याः) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (उप) (यन्ति) (अन्याः) (समानम्) तुल्यम् (उर्वम्) दुःखानां हिंसकम् (नद्यः) (पृणन्ति) सुखयन्ति (तम्) (उ) वितर्के (शुचिम्) पवित्रम् (शुचयः) पवित्राः (दीदिवांसम्) देदीप्यमानम् (अपाम्) जलानां मध्ये (नपातम्) नाशरहितमग्निम् (परि) (तस्थुः) तिष्ठन्ति (आपः) जलानि ॥३॥
Connotation: - यथा नद्यः स्वयं समुद्रं प्राप्य स्थिराः शुद्धोदका जायन्ते यथा आपो मेघमण्डलं प्राप्य दिव्या भवन्ति तथा स्त्र्यभीष्टं पतिं पतिरभीष्टां स्त्रियं च प्राप्य स्थिरमनस्कौ शुद्धभावौ भवतः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशी नदी स्वतः समुद्राला मिळते व स्थिर आणि शुद्ध जलयुक्त होते. जसे जल मेघमंडलातून दिव्य बनते, तसे स्त्री यथायोग्य पती व पुरुष यथायोग्य पत्नी प्राप्त करून स्थिर चित्त व शुद्ध भावयुक्त बनतात. ॥ ३ ॥